आज की इस बदलती दुनिया में चीज़ें काफ़ी तेज़ी से बदल रही है चाहे वो टेक्नोलॉजी में हो , एजुकेशन में, या फिर इंफ्रास्ट्रक्चर में। बदलाओ हर जगह आ रहा है पर बावज़ूद इसके जो चीज़ सबसे ज़्यादा बदलनी चाहिए उसी में कोई परिवर्तन नहीं हो रहा और वो है 'हमारी सोच। ' हम ऊपर से कितने ही वेल सेट हो पर अगर हमारी सोच वही पुरानी है तो ऐसा बदलाओ किसी काम का नहीं। पुराने लोग ज़ल्दी नई सोच को नहीं अपना पाते है और जो लोग बदलना चाहते है वो भी समाज़ , पाप और पुण्य जैसी चीज़ों में फंस कर रह जाते है। पर अगर हमें आगे बढ़ना है और दुनिया में अपना एक स्थान बनाना है तो हमें अपनी सोच को बदलना होगा। कुछ उदाहरणों से मैं अपनी बात कहना चाहूँगी ……
१. टेलीविज़न , एक ज़रिया देश दुनिया में हो रही घटनाओं को जानने का और मनोरंजन का। टेलीविज़न में आने वाले डेली सोअप्स और तमाम ऐसे प्रोग्राम्स जो महज़ मनोरंजन के लिए होते है जब इन प्रोग्राम्स को दिखाए जाने पर कोई आपत्ति नहीं होती है तो AIB जैसे प्रोग्राम्स पर इतनी कंट्रोवर्सीज़ क्यों ?? यह प्रोग्राम भले ही एडल्ट प्रोग्राम था पर इससे ज़मा किये हुए सारे रुपये NGOs को डोनेट किये गए थे, जो की एक सामजिक कार्य है। फिर इस प्रोगाम को लेकर इतना बवाल क्यों?? यही पर ज़रूरत है हमें सोच बदलने की। तो सोच बदलो ……
२. हमारे यहाँ यह रिवाज़ पता नहीं किसने बनाया है की शादी की रात में दूल्हे और उसके परिवार को गालियाँ दी जाती है वो भी गा कर और वो भी रस्मों और रिवाज़ों के नाम पर। अब यह बताइए एक रिश्ते की शुरूवात प्यार और आशीर्वाद से होनी चाहिए या फिर गालियों से। यही पर ज़रुरत है हमें सोच बदलने की। तो सोच बदलो .......
३. लड़की होना तो आज भी गुनाह है। लड़कियों को होने वाले नेचुरल प्रोसेस जिसे "पीरियड्स" कहा जाता है उस समय लड़कियों को ऐसे रखा जाता है जैसे वो घर का कचरा हो। आचार मत छूना , किचन में मत जाना , मंदिर में मत जाना वग़ैरह -वग़ैरह। बात इतनी सी समझ क्यों नहीं आती की यह एक नेचुरल प्रोसेस है तो इतनी पाबंदियाँ क्यों ?? हम वही है जो एक दिन पहले थे। यही पर ज़रुरत है हमें सोच बदलने की। तो सोच बदलो ……
ऐसे ही तमाम और भी उदाहरण है जो यह बताते है की हमें अपनी सोच को बदलने की कितनी ज़रूरत है। तभी हम बदल सकेंगें तौर तभी सही मायनों में इस देश का विकास होगा। तो "खुद को बदलो केवल तन से ही नहीं मन से भी। "
१. टेलीविज़न , एक ज़रिया देश दुनिया में हो रही घटनाओं को जानने का और मनोरंजन का। टेलीविज़न में आने वाले डेली सोअप्स और तमाम ऐसे प्रोग्राम्स जो महज़ मनोरंजन के लिए होते है जब इन प्रोग्राम्स को दिखाए जाने पर कोई आपत्ति नहीं होती है तो AIB जैसे प्रोग्राम्स पर इतनी कंट्रोवर्सीज़ क्यों ?? यह प्रोग्राम भले ही एडल्ट प्रोग्राम था पर इससे ज़मा किये हुए सारे रुपये NGOs को डोनेट किये गए थे, जो की एक सामजिक कार्य है। फिर इस प्रोगाम को लेकर इतना बवाल क्यों?? यही पर ज़रूरत है हमें सोच बदलने की। तो सोच बदलो ……
२. हमारे यहाँ यह रिवाज़ पता नहीं किसने बनाया है की शादी की रात में दूल्हे और उसके परिवार को गालियाँ दी जाती है वो भी गा कर और वो भी रस्मों और रिवाज़ों के नाम पर। अब यह बताइए एक रिश्ते की शुरूवात प्यार और आशीर्वाद से होनी चाहिए या फिर गालियों से। यही पर ज़रुरत है हमें सोच बदलने की। तो सोच बदलो .......
३. लड़की होना तो आज भी गुनाह है। लड़कियों को होने वाले नेचुरल प्रोसेस जिसे "पीरियड्स" कहा जाता है उस समय लड़कियों को ऐसे रखा जाता है जैसे वो घर का कचरा हो। आचार मत छूना , किचन में मत जाना , मंदिर में मत जाना वग़ैरह -वग़ैरह। बात इतनी सी समझ क्यों नहीं आती की यह एक नेचुरल प्रोसेस है तो इतनी पाबंदियाँ क्यों ?? हम वही है जो एक दिन पहले थे। यही पर ज़रुरत है हमें सोच बदलने की। तो सोच बदलो ……
ऐसे ही तमाम और भी उदाहरण है जो यह बताते है की हमें अपनी सोच को बदलने की कितनी ज़रूरत है। तभी हम बदल सकेंगें तौर तभी सही मायनों में इस देश का विकास होगा। तो "खुद को बदलो केवल तन से ही नहीं मन से भी। "
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